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इस मोड़ से जाते हैं

“सच्चे प्यार का रास्ता कभी सुचारू रूप से नहीं चला।” – विलियम शेक्सपियर

शेक्सपियर ने चाहे ये सदियों पहले कहा हो पर ये आज भी एक शाश्वत सत्य है, प्यार में पड़ना ऐसा ही जैसे की किसी RollerCoaster की सवारी, ऊंचे- नीचे, ऊबड़-खाबड़ होते हुए प्यार अपनी मंज़िल पर पहुंचेगा या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता।

और प्यार की मंज़िल क्या है, ये तो कोई जानता भी नहीं !


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जैसे की गुलज़ार साब ने भी कहा है , कहाँ से चले कहाँ के लिए, ये खबर नहीं थी मगर, कोई भी सिरा जहाँ जा मिला वहीँ तुम मिलोगे !!!

चाय या कॉफ़ी, आपकी पसंद कुछ हो सकती है… पर क्या आपने कभी काली मिर्च, लौंग, शहद, निम्बू और जाने क्या क्या मिलाकर धीमी आंच पर, देर तक पकाया काढ़ा try किया है?


उस काढ़े में एक अद्भुत स्वाद होता है …. वो स्वाद जुबां पर तो होता है पर आप उसको समझा नहीं सकते,तीखा है, मीठा है, खट्टा है या जाने कैसा है !!!

और ऐसा ही जायका है इस गीत का

इस मोड़ से जाते हैं…

गुलज़ार साब ने अपने शब्दों की काली मिर्च को शहद में भिगो कर RD के साथ धीमे आंच पर बहुत देर तक पकाया है ,और जिसे लता और किशोर ने ऐसे परोसा है कि इसका अनोखा स्वाद ज़ुबा पर भी रह जाता है, जेहन में भी।

और आप इसके अद्भुत स्वाद का आनंद लेते हुए हर रोज़ इसका एक नया अर्थ निकालते ही रहते हैं. इस गाने के कई मतलब हो सकते हैं, और interesting बात ये कि वो सभी मतलब सही भी होते हैं.

और यहाँ पेश है मेरे वाला अर्थ …

यह गाना फिल्म में एक ऐसे बिंदु पर आता है जहां आरती (सुचित्रा सेन) और जेके (संजीव कुमार ) अपने भविष्य के बारे में कोई निर्णय लेने से पहले अपने सामने मौजूद संभावनाओं को टटोलते है, और ढूँढ़ते है वो आने वाला कल जिसे दोनों एक साथ जी सकें।

इनका प्यार जोश भरा teenage Love नहीं, बल्कि उन दो लोगों में है जिनकी एक परिपक्व सोच है, इसलिए बहुत खुलकर वो अपनी options को discuss कर रहे हैं.

आरती और JK एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहाँ options तो बहुत हैं पर चुनना आसान काम नहीं। जिसका प्रमुख कारण है दोनों की ज़िन्दगियों की असमानताएं, दोनों के अलग अलग सपने, अलग-अलग नज़रिये

आरती, एक धनी उद्यमी की महत्वाकांक्षी बेटी है जो राजनीति में नाम कमाना चाहती है जबकि JK, वो आम आदमी है जो अपनी छोटी-छोटी खुशियों में ही संतुष्ट रहता है। और यही विपरीत गुण उन्हें एक दुसरे की तरफ आकर्षित तो करते ही हैं साथ ही संदेह भी पैदा करते है कि, क्या ये एक साथ चल पाएंगे ?

इसलिए,

इस मोड़ से जाते हैं …


आरती: इस मोड़ से जाते हैं … कुछ सुस्त कदम रस्ते, कुछ तेज कदम राहें …

ये समय आरती के चुनाव करने का है, जीवन में जहाँ वो खड़ी है वहां से उसके लिए दो रास्ते निकलते हैं

यदि वह JK के साथ जाती है तो उसे बहुत कुछ छोड़ना पड़ सकता है। उसकी महत्वकांक्षाएं, उसके सपने सब पीछे रह जायेंगे। इस जीवन में सपनों की उड़ान नहीं है, बल्कि एक लय है जिसकी अपनी ही एक गति है. इसमें वो रफ़्तार नहीं है जिसकी आरती आदी है. गुलज़ार इसे थोड़ा सुस्त और धीमा ( कुछ सुस्त कदम रास्ते ) बताते हैं।

इसके विपरीत, अगर वह अपनी महत्वाकांक्षाओं के साथ राजनैतिक जीवन में आगे बढ़ने का फैसला करती है तो उसे वह रफ़्तार, वो तेज़ी तो मिलेगी जो वह चाहती है पर प्यार साथ चल पायेगा या नहीं इसमें शक है। यही ‘तेज-तर्रार’ जीवन, गुलज़ार के शब्दों में ‘कुछ तेज़ कदम राहें ‘ हैं.

और आरती को यही दुविधा घेरे हुए है.

पर JK का नजरिया अलग और स्पष्ट है. उसको खुद कोई दुविधा नहीं पर वो आरती की स्थिति को समझता है।और इसलिए आरती के सामने इस दुविधा को दूसरे रूप से पेश करता है, कि शायद इससे उसे कुछ help हो सके

JK: पत्थर की हवेली को ….शीशों के घरोंदों में , तिनकों के नशेमन तक …

बहुत कम में भी खुश रह सकने वाले JK के लिए आरती की दुविधाओं में तीन संभावनाएं छिपी हैं।

और यही तीन संभावनाएं इस गीत की वो काली मिर्च, शहद और निम्बू है, जिनको गुलज़ार साब ने इतने कमाल के साथ के साथ परोसा है कि आप इस मिश्रण का मज़ा भी लेते रहते है और स्वाद की पहचान में खोए भी रहते हैं.

पत्थर की हवेली – एक पत्थर का बना विशाल घर जिसमें प्यार और भावनाओं के लिए बहुत कम जगह है। शीशे के घरोंदों में – एक चमकदार कांच का घर, एक ऐसी नाज़ुक दुनिया जिसकी चमक दमक दूर से ही दिख जाती है, पर ये चमक कब तक रहेगी, कुछ पता नहीं जैसे कि राजनीति की दुनिया तिनकों के नशेमन तक – एक घोंसला, जिसका एक-एक तिनका बहुत सहेज कर प्यार से इकट्ठा किया है, कवियों कि भाषा में यही वो जगह जहाँ रोमांस खिलता है। यही रोमांस, आपस का प्यार इस हल्का सा दिखने वाले घोंसले की शक्ति भी है।

पर जो JK ने कहा है, उसमे भी दो अर्थ छिपे हैं

पहला … आरती एक ऐसा जीवन चुन सकती है, जैसे कि पत्थर की हवेली यानि उसके पिता का घर, जो भव्य और शानदार तो है ही पत्थर की तरह भावहीन भी है, या भंगुर और पारदर्शी जैसे कि शीशों से बना घर, यानि वो दुनिया जहाँ वह राजनीति में अपनी महत्वकांक्षाओं का पीछा करती हुई पहुँचती है, या प्रेम और उत्साह से भरा तिनकों का नशेमन, यानि कि वो घोंसला जो वो JK के साथ मिलकर बनाती है

इसे देखने का एक दूसरा नज़रिया उन दोनों के रिश्तों की मजबूती को दर्शाता है:

उंनका रिश्ता एक पत्थर की हवेली कि तरह मजबूत, स्थायी भी हो सकता है ; या ‘शीशे के घरौंदे’ की तरह नाजुक, जिसकी उम्र का कोई अंदाज़ा नहीं, जिसमे सब पारदर्शी है ; या फिर तिनकों से बने घोंसलों की तरह बेहद अस्थायी

कोई भी इंसान आम तौर पर अपने जीवन में इन दुविधाओं का सामना करता है और यही चाहता है कि आगे का रास्ता बिना किसी दुविधा के बहुत आसानी से बीते, पर हमेशा ऐसा नहीं होता है.

Stephen Cove ने अपनी पुस्तक ‘The 7 Habits of Highly Effective People’ में लिखा है, “मैं आज उन विकल्पों की वजह से हूं जो मैंने कल किए थे।”

सही कहते हैं, विकल्प और उसके सही चुनाव में बहुत शक्ति है ! उस मोड़ से आप कहाँ मुड़ेंगे, यही आपके आने वाले जीवन की दिशा तय करता है. क्यूंकि, मोड़ कभी ठहराव नहीं हो सकते,कोई एक राह चुनकर आगे बढ़ने के अलावा कोई और option ही नहीं है

JK ने तो उन दोनों के लिए बनाई गई भविष्य की संभावनाओं के दायरे को खोल दिया है, लेकिन क्या चुनाव करना है, ये सब आरती की प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है।

आरती: आंधी कि तरह उड़ कर एक राह गुजरती है, शर्माती हुयी कोई क़दमों से उतरती है … इन रेशमी राहों में इक राह तो वो होगी तुम तक जो पहुँचती है …

तूफान किसी भी वस्तु को तेज़ी तो दे सकता है पर दिशा नहीं। आंधी के भरोसे उड़ने वाला अक्सर दिशाहीन ही रहता है, उसका कोई निश्चित गंतव्य हो ही नहीं सकता है।

आरती ये समझती भी है, और उसे यकीन भी नहीं है कि यह आंधी उसे मंज़िल तक ले भी जाएगी या नहीं ! और अगर कहीं पहुंची भी तो क्या यही उसकी मंज़िल होगी ? निश्चित कुछ भी नहीं

और इसलिए उसने मन बना लिया है, उस राह पर चलने का जहाँ JK का साथ है, जहाँ उसका प्यार है और जहाँ उसे अपने पैरों के नीचे एक ’मखमली, रेशमी ’ एहसास महसूस होता है।

इस से पहले आरती कोई decision ले, JK अपनी स्थिति को स्पष्ट करना चाहता है….

JK: इक दूर से आती है पास आके पलटती है, इक राह अकेली सी रूकती है न चलती है

उसके लिए, राजनीति की दुनिया एक भ्रम है, एक ऐसी राह दिखाई तो देती है पर वास्तव में होती नहीं है , ऐसे ही जैसे कि एक मृगतृष्णा… जैसे भी हो पर ये उसकी राह हो ही नहीं सकती, यहाँ पर उसका कोई भविष्य नहीं है। JK के जीवन में तो एक ठहराव है, कहीं पहुँचने की कोई जल्दी ही नहीं है. यही उसका एकमात्र विकल्प है, और इस बात को वह इतने खुले तौर पर कह भी देता है कि आरती को संकेत मिल जाता है।

आरती भी अब उसी क्षण का सामना कर रही है, जिसमे उसे अपने भविष्य को आकार देना है.

भविष्य है तो आनेवाला कल, पर उसकी शुरुआत आज से ही होती है। आरती ये बात अच्छी तरह समझती है इसलिए उसने अपना मन भी बना लिया है, और अब कह भी देती है :

ये सोच के बैठी हूँ , इक राह तो वो होगी तुम तक जो पहुंचती है …

अब उसकी राह सिर्फ JK तक ही पहुँचती है।

गीत यहां समाप्त होता है।

अगर ध्यान से देखा जाये तो इस गाने की एक खासियत है जो कि इसे किसी और हिंदी युगल गीत से अलग करती है। आमतौर पर युगल गीतों में कुछ common lines होती हैं जिनको दोनों कलाकार न सिर्फ दोहराते हैं बल्कि कई बार एक साथ गाते भी हैं। लेकिन यहाँ ऐसा नहीं है । चूँकि ये गीत इन दोनों की निजी सोच को ज़ाहिर करता है, इसलिए ये दोनों सिर्फ अपनी lines को ही गाते हैं। यह एक अद्वितीय या कहें बहुत गहराई से सोचा हुआ एक निर्णय है , बहुत धीमी आंच पर, बहुत देर तक पकाया काढ़ा !

( केवल फिल्म के अंत में, जहां आरती, JK के साथ वापस आने का निर्णय करती है तो ये पंक्तियाँ ( पत्थर की हवेली को ) Female Voice में सुनाई देती है )

कोई भी गीत, मेरे लिए, तब तक चिरकालिक नहीं है, जब तक कि यह फिल्म के संदर्भ के बाहर न खड़ा हो। और ये गीत जितना फिल्म के साथ जुड़ता है उतना ही फिल्म के बाहर भी।

अगर आपने फिल्म नहीं भी देखी है तो भी,इस काढ़े का स्वाद आप भूल नहीं पाते

और यही इस गीत को एक उत्कृष्ट कृति बनाता है।



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